Saturday, 4 June 2016

मन-गणित (कक्षा 5 अध्‍याय17)


 

कक्षा 5 की पाठ्यपुस्‍तकों का आखिरी पाठ मन-गणित है। मन-गणित यानी गणित के काम काज को मन में कर पाने की काबिलियत। इस लिहाज से इस पाठ का मकसद बच्‍चों में मन-गणित की काबिलि‍यत को विकसित करना होना चाहिए। वैसे मन-गणित अंग्रेजी के मेंटल मैथ का खराब हिंदी अनुवाद है। ज्‍यादा बेहतर होता कि इसका नाम मौखि‍क गणित रखा जाता। इसे देखते ही आप हैरान ही हो सकते हैं कि कक्षा 1 से 4 तक तो मन-गणित पर कोई पाठ नहीं है , कक्षा 5 से 8 तक में भी इस तरह का कोई पाठ नहीं है, अचानक कक्षा 5 में यह पाठ क्‍यों‍कर प्रकट हो गया होगा। क्‍या कक्षा 1 से 4 तक के 6 से 10 साल की उम्र तथा कक्षा 6 से 8 तक के 12 से 14 साल की उम्र के बच्‍चों के साथ इस मुंहजुबानी ग‍णित पर काम करने की जरूरत नहीं है। 10 साल की उम्र में ऐसी क्‍या खास बात है कि इसे लेने की जरूरत पड़ गई है। तो इस पहेली को आप चैन से हल करते रहिए।  

पहली और आखरी बार कक्षा 5 में प्रगट होने के अलावा भी यह पाठ कई किस्‍म की मुसीबतों का मारा है। अभी हम मोटे तौर पर इसके पहले पन्‍ने पर ही बात करेंगे। 

पहली, इस पाठ के विषयवस्‍तु पर ध्‍यान दें तो इसकी मान्‍यता यह है कि संक्रियाओं को छोड़ कर किसी भी अवधारणा में मन-गणित का काम करने की जरूरत नहीं है चाहे वो संख्‍याएं हों या ज्‍यामिति हों या आंकड़े हों या मुद्रा, समय, भार, लंबाई आदि हो। संक्रियाओं में भी जोड़ व घटाव में चार अंकीय संख्‍याओं तक और गुणा व भाग में एक अंकीय संख्‍याओं तक ही मन गणित की जरूरत है। इसके बाद उसकी कोई जरूरत नहीं। इस नतीजे पर लेखक समूह कैसे पहुंचा यह तो वह ही बता सकता है। मेरी जानकारी में अभी तक तो देशी व परदेशी ऐसा कोई शोध उपलब्‍ध नहीं है जो यह बताता हो कि मन-गणित को सिर्फ और सिर्फ कक्षा 5 में तथा 10 साल की उम्र वाले बच्‍चों को ही करवाया जाना चाहिए, ना तो उससे पहले व ना उससे बाद।

दूसरी, मौखिक गणित सिखाने के लिए जो तरीका उदाहरण में चुना गया है वह बहुत ही हास्‍यास्‍पद है। लेखकगण ने एक सवाल लिया है। उसके तीन संभावित उत्‍तर दिए हैं। अब बच्‍चे को यह पता लगाना है कि इनमें से सही जवाब कौनसा है। और इसका तरीका यह बताया गया है कि तीन में से दो गलत जवाबों का पता लगा लो तो बचा हुआ जवाब सही हो जाएगा। अब आप थोड़ी कल्‍पना करिए कि आपको मौखि‍क गणित की जरूरत कब पड़ती है। अक्‍सर आप बाजार में खरीदारी करते हैं, उसी वक्‍त ना। तो इस तरीके से सीखने के बाद आपको करना यह होगा कि अगर आपको कोई दो संख्‍या जोड़नी या गुणा करनी है तो आप दुकानदार से कहें कि तुम तीन विकल्‍प बताओ तभी मैं हिसाब लगा कर बताऊंगा कि तुम्‍हारा कौनसा विकल्‍प सही है। है ना हास्‍यास्‍पद बात। दुकानदार आपकी तरफ देख कर सोचेगा कि किसने आपको बेवक्‍त खुला छोड़ दिया है और आप तरस खाकर खुद ही हिसाब लगा कर बता देगा। लो आपकी मन गणित तो मन की मन में रह गई। यानी यह तरीका एक बहुत ही व्‍यवहारिक तरीके को अव्‍यवहारिक बना देता है। 

तीसरी, उदाहरण के लिए दो सवाल चुने गए हैं, 72 + 4__  = ____ तथा 2__4 – 6__ = ___ । इ सवालों के चयन पर भी कई तरह के सवाल उठते हैं। पहला, अभ्‍यास में दूसरे सवालों के साथ एक अंकीय जोड़ व घटाव के सवाल भी दिए गए हैं लेकिन समझाने के लिए दो या तीन अंकीय जोड़ के सवाल दिए गए हैं। क्‍या यह माना जा रहा है कि एक अंकीय सवाल ज्‍यादा कठिन होते हैं इसलिए उनसे 'सरल' दो या तीन अंकीय सवालों को समझाया जाए। दूसरा, इन सवालों के लिए कोई संदर्भ नहीं बनाया गया है जबकि सवालों को मौखिक तौर पर हल करने की ज्‍यादातर जरूरत रोजमर्रा के कामकाज में पड़ती है। तीसरा, इन सवालों का चयन मौखिक तौर पर सवालों को हल करना सिखाने के लिए किया गया है या अटकाने के लिए। इन सवालों में दो चुनौतियां हैं एक तो संख्‍याओं में छोड़े गए अंक या अंकों का अनुमान लगाना व दूसरा संख्‍याओं के योगफल या शेषफल का अनुमान लगाना। किन्‍हीं दो संख्‍याओं के साथ मौखिक संक्रिया करना ही अपने आप में चुनौतीपूर्ण काम होता है तिस पर उन संख्‍याओं में से अंकों को गायब करके उसे दोहरा तिहरा चुनौतीपूर्ण करने का मकसद बच्‍चों को कम से कम मौखिक गणि‍त में माहिर बनाना तो नहीं ही हो सकता।

चौथा, लेखक गणों द्वारा अनुमान के लिए लिखी गई बातों पढ़ने पर साफ लगता है कि उन्‍होंने उनके बारे में खुद भी नहीं सोचा है। शायद उनके सर पर भी गणित का भूत इतना सवार रहा हो कि वे एक बार लिखने के बाद दोबारा उसे पढ़ने की हिम्‍मत ना कर पाते हों। जैसे, जोड़ के सवाल के लिए उन्‍होंने एक लड़की से इस तरह विचार करवाया, ‘’पहली संख्‍या 72 है और दूसरी संख्‍या 50 से कम है इसलिए उसकी जोड़ 145 नहीं हो सकती।‘’ इस पूरी बात में सिर्फ पहली बात संख्‍या सवाल देख कर पता चल जाती है। लेकिन दूसरी संख्‍या के बारे में कैसे पता चला कि वह 50 से कम है, इस बारे में कोई विचार या तर्क लेखकों के दिमाग में पैदा नहीं होता। वे उस तर्क को शब्‍दों में नहीं लिखते जिसे पढ़ कर समझ आए कि क्‍यों 4 से आरंभ होने वाली दो अंकों की संख्‍या 50 से छोटी ही होगी। इसी तरह उनके दिमाग में वह विचार भी पैदा नहीं होता जिसकी मदद से इस नतीजे तक पहुंचा जा सके कि 72 व 50 मिल कर 145 नहीं हो सकते। यानी लेखकों ने लड़की को बिना कोई तर्क किए ऐसे नतीजों पर पहुंचा दिया है जिसका बुनियादी तर्क विचार करते वक्‍त उसके पास भाषा में बना ही नहीं। ऐसी ही समस्‍या लड़के द्वारा किए गए तर्क में भी है कि वह जिन नतीजों को सोच रहा है उससे जुड़े बुनियादी तर्क उसके पास नहीं हैं।

पांचवां, इस पूरे पन्‍ने की भाषा ऐसी है कि यह अध्‍यापक को संबोधित है। जैसे, ''अध्‍यापक एक अभ्‍यास बोेर्ड पर लिखते हैं . . . ।'' आप पूछ सकते हैं कि यह किताब बच्‍चों के लिए है या अध्‍यापक के लिए। अगर यह बात बच्‍चोंं को नहीं पढ़नी तो इसमें लिखी क्‍यों गई है। इसी तरह से लेखकों को सवाल व अभ्‍यास का फर्क शायद नहीं पता इसलिए वे सवालों को पूरे पाठ में अभ्‍यास कह कर बुलाते हैं। पाठ में आई बिंदी का हाल यह है कि उसे जहां होना चाहिए वहां नहीं होती जैसे जोड़़ में ड के नीचे और जहां नहीं होना चाहिए वहां आ कर ठसक के साथ बैठ जाती है जैसे हो में मात्रा के साथ। फोंट का ये हाल है कि वो कभी छोटा हो जाता है तो कभी बड़ा, जैैसे उसे यह समझ में नहीं आ रहा हो कि उसे कब किस आकार में रहना चाहिए।  

मन-गणित वाला पाठ इस बात का एक बेहतरीन नमूना है कि ये किताबें किस कदर हड़बड़ी में बनाई गई है। इतनी हड़बड़ी कि संख्‍याओं और संक्रियाओं पर काम करने की कार्यनीतियों को विकसित करने के काम के साथ पाठ्यपुस्‍तक में इस तरह का बरताव किया कि कोई बच्‍चा तो बच्‍चा, अध्‍यापक तक उसका इस्‍तेमाल करने की हिम्‍मत ही ना कर पाए। दुनिया भर में गणित के अभ्‍यासकर्ता व शोधकर्ता संख्‍याओं व संक्रियाओं को समझने के लिए मौखिक कार्यनीतियों को न सिर्फ काम ले रहे हैं बल्कि अपने स्‍कूलों में व्‍यवस्थित तरीके से उस पर काम भी कर रहे हैं। वे न सिर्फ इन पर कार्यनीतियों की मदद से गणित की अवधारणाओं के साथ मौखिक काम करना सिखाते हैं बल्कि मौखिक गणित के वक्‍त काम लिए गए तरीकों व कार्यनीतियों का गणितीय निरूपण करना भी सिखाते हैं ताकि बच्‍चे अपने रोजमर्रा के गणना संबंधी कामकाज का गणितीय निरूपण करने के साथ साथ गणित को अपनी जिंदगी से भी जोड़ कर समझ सके व अपनी गणितीयकरण की काबिलियत को बढ़ा सकें और गणितीय तौर तरीकों से चिंतन करना सीख सके जो कि राष्‍ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 के मुतााबिक गणित शिक्षण का सबसे प्रमुख मकसद है।  

रवि कांत 

11 comments:

  1. सटीक और शानदार विश्लेषण

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    1. शुक्रिया सुरेन्द्रजी

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  2. एक तो तितऊ लौकी, दूजे चढ़ी नीम की डार। ऐसे ही गणित डरावनी चीज है, उस पर यह झोलमझाल ! खुदा खैर करे !

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    1. यह पाठ तो एक दु:स्वप्न जैसा है।

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  3. These books are not child centric.

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    1. इनके सेण्टर का ही तो पता नहीं चल रहा है की वो एक हैं या अनेक।

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  4. सटीक एवं ज्ञान वर्धक विश्लेषण रवि जी

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  5. जब इन्होंने तै कर ही लिया है कि शिक्षा का सत्यानाश करना है तो फिर यही होना है! बहरहाल, विश्लेषण बहुत उम्दा है. बधाई!

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  6. These books are not child centric.

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