(अंग्रेजी पाठ्यपुस्तकों की अंग्रेजी में पोस्ट की गई समीक्षा का भाषान्तर प्रस्तुत है)
भाग I
यह समीक्षा तीन भागों में प्रस्तुत की जाएगी क्योंकि इन किताबों के बारे
में बहुत कुछ कहने को है ...
सिद्धांत व नज़रिया
पाठ्यपुस्तकें अपनी भूमिका में यह दावा करती हैं कि यह राष्ट्रीय
पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) 2005 की पालना करती हैं। हालांकि नीचे दिए गए बिन्दुओं
को देखने पर पता चलता है कि वे उसकी पूरी तरह अवहेलना करते हुए उसके सिद्धांतों व
नज़रिए को सिर के बल खड़ा कर देती हैं। वे सीखने का किसी प्रोत्साहन का परिणाम
मानती हुई रटाई को प्रोत्साहन देती हैं और सीखने को समग्र की बजाए बहुत छोटे-छोटे
अंशों में देखती हैं और शिक्षण को बारंबार अभ्यास व घोटा लगाते हुए व्यवहार में
बदलाव के तौर पर स्थापित करती हैं।
भूमिका/आमुख
क्या उद्देश्यों को निचले स्तर पर ले जाना इसका जवाब हो सकता है ?
आमुख में आरंभिक शिक्षा के स्तर पर अंग्रेजी सिखाने के पीछे यह तर्क दिया
गया है अंग्रेजी हमारी आम बोल-चाल की भाषा है। पाठ्यपुस्तकें छात्रों को अंग्रेजी
सीखने से संबंधित सभी क्षेत्रों में सक्षम बनाती हैं। आगे इन क्षेत्रों को इस
प्रकार व्याख्यायित किया गया है - सुनना, बोलना, पढ़ना व लिखना।
किन्तु एनसीएफ 2005 द्वितीय भाषा सीखने के उद्देश्यों को दोहरे स्तरों पर
व्याख्यायित करता है। पहला स्वाभाविक भाषा की तरह प्रवीणता हासिल करना और दूसरा
अमूर्त स्तर पर विचार कर पाने व ज्ञान हासिल कर पाने के साधन के तौर पर। एनसीएफ
इससे आगे बढ़कर यह भी कहता है कि भाषा सब कुछ सीखने का स्रोत है, यह समझ विकसित
करने व ज्ञान रचने का माध्यम है। तो फिर क्या हम एक राज्य के तौर पर सबको उच्च
शिक्षा हासिल करने के लिए परिस्थितियाँ उपलब्ध नहीं करवा पाने की अपनी अक्षमता पर
पर्दा डाल रहे हैं?
अगर भाषा शिक्षण (इसमें उच्च् शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी भाषा भी शामिल
है) का उद्देश्य यह है तो फिर राजस्थान ने अपने उद्देश्यों को इतना नीचे क्यों
तय किया हुआ है कि उनसे भाषा की आधारभूत क्षमताएँ हासिल की जा सकती हों और उसका
इस्तेमाल आम बोल-चाल में किया जा सकता हो ? इसके पीछे क्या रहस्य है? या फिर ऐसा होने की वजह यह है
कि यह राज्य पाठ्यपुस्तक मंडल की किताबें हैं और इन्हें केवल वंचित समुदायों के
बच्चे पढ़ते हैं। अगर ऐसा है तो क्या हम इन छात्रों को उच्च शिक्षा में बराबर
भागीदारी के अवसरों से व आर्थिक सशक्तिकरण से बेदखल नहीं कर रहे हैं ?
यह किताबें निम्न मुद्दों पर इनके लेखकों की मान्यताओं को उजागर करते हुए
क्या-क्या कहती हैं ?
पाठ्यपुस्तकों में बालक व बचपन को लेकर मान्यताएँ
बच्चे अपूर्ण वयस्क होते हैं और उनके आस-पास मौजूद वयस्कों की जिम्मेदारी
है कि उन्हें नैतिकता सिखाएँ अस्सी प्रतिशत पाठ सीधे-सीधे बच्चें को नैतिकता
सिखाते हुए कहते हैं :
बच्चों को पानी बर्बाद नहीं करना चाहिए, उन्हें साफ-सुथरा रहना चाहिए, उन्हें
दूसरों की मदद करनी चाहिए आदि उपदेश देने में कोई बुराई नहीं है किन्तु क्या
अंग्रेजी भाषा की किताब का उद्देश्य यही है, और क्या उपदेश देने व नैतिकता शिष्टाचार
सिखाने से बच्चे बेहतर मनुष्य बन जाते हैं?
एनसीएफ 2005 साफ तौर पर यह कहता है कि बच्चे सचेतन रूप से ज्ञान का निर्माण
खुद करते हैं। उन्हें अनुभवों व चर्चा के जरिए अवधारणों के बारे में खुद अपने
निर्णय लेने की जरूरत होती है। ‘बाल केन्द्रित शिक्षा का अर्थ है कि बच्चों के
अनुभवों, उनकी राय व सक्रिय भागीदारी को प्राथमिकता दी जाए। हमें उनकी सक्रियता व
रचनात्मकता को विकसित करने की जरूरत होती है। अच्छे बच्चे की अवधारणा का जोर
उन्हें शिक्षक का आज्ञापालक बनाने पर होता है, इसमें नैतिक चरित्र तथा ज्ञान की
सत्ता के तौर पर शिक्षक की कही बातों को मानने पर बल होता है।‘
कक्षा III
की किताबों में 15 पाठ हैं इनमें से 7 पाठ बच्चे को एक ऐसे अनघढ़ प्राणी के
तौर पर देखते हैं जो गलत काम करता रहता, उसे सही व्यवहारों के हथौड़े से गढ़ते
हुए नैतिकता व शिष्टाचार सिखाना है। नीचे कक्षा III की किताब से पाठों के कुछ उदारहण दिए जा रहे हैं :
-
Work while you work – teaching the child time management (बच्चों को समय
प्रबंधन सिखाता है)
-
A Smile with a Blessing – helping others (दूसरों की मदद की सीख)
-
Good Habits
-
Swach Bharat Abhiyan – cleanliness (स्वच्छता के बारे में)
-
Traffic Lights – Road sense (सड़क पर चलने के नियमों
के बारे में)
-
Life Echoes – love and hatred (प्यार और नफरत के बारे
में)
-
Ant and the Hunter - gratitude (कृतज्ञता/आभार के बारे में)
कक्षा III में दिए गए अभ्यासों
का जोर यह लिखवाने पर है कि कौनसा व्यवहार सही है और कौनसा गलत। पृष्ठ 32 व 33
इसके नमूने हैं। चित्र को देखकर सवाल पढ़ो और जवाब दो।
-
Don’t play in the rain. No, I won’t. (बारिश में मत खेलो। ठीक
है मैं नहीं खेलूँगा)
-
Don’t tease animals. No, I won’t. (पशुओं को तंग मत करो। ठीक
है मैं नहीं करूँगा)
-
Don’t pluck flowers. No, I won’t. (फूलों को मत तोड़ो। ठीक
है मैं नहीं तोड़ूँगा)
क्या हम ‘क्या करना ठीक है’ यह बता देने मात्र यह विचार करना सीख जाते हैं
कि कोई काम क्यों करना चाहिए और कोई काम क्यों नहीं करना चाहिए ? उपदेश देने से और सही गलत बता देने से केवल व्यवहार के स्तर पर बदलाव आता
है, क्या इससे हमारी सोच में भी बदलाव आता है ? दूसरी बात कि क्या कक्षा III का उद्देश्य मात्र यही सिखाना
है और क्या 15 में से 7 पाठ ‘सही और गलत’ सिखाने पर लगा दिए जाने चाहिए ? क्या यह बेहतर नहीं होता
कि बच्चों को समूहों में अपनी मातृ भाषा में चर्चा करने के मौके दिए जाते और वे
अपने विचार रख पाते, शिक्षक उनकी अंग्रेजी में जवाब देने में मदद करते। स्वतंत्र
अभिव्यक्ति, अपने मत को जाहिर करने का अधिकार (अस्वीकृत मत को भी), चर्चा करना,
विचार व तर्क करना आदि के लिए अभ्यास बनाना क्या असंभव है या फिर यह कहें कि
हममें ऐसा करने की काबिलियत नहीं है।
भाषा सीखना कौशल विकसित करना है
भाषा सीखना, सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना व व्याकरण सीखना जैसे कुछ कौशलों
को विकसित करने का मामला है। और इसे सिखाने के लिए चित्रों व शब्दों के जरिए घोटा
लगवाने व बारंबार अभ्यास करवाने की पद्धति का इस्तेमाल किया गया है। सीखने के
लिए बच्चे को शिक्षक के पीछ-पीछे दोहराने की जरूरत होती है और इसीलिए कक्षा 4 के
बाद हर पाठ की गतिाविधि 2 में बच्चे को शिक्षक के पीछे शब्द दोहराने का काम दिया
गया है। ऐसा क्यों है कि थीम आधारित ऐसी कोई गतिविधियाँ नहीं है जिनमें अवधारणाओं
का निर्माण करते हुए शब्दों के अर्थों तक पहुँचने के लिए शब्दों पर काम हो, खेल
हो, समूह में काम करना हो ? इतना दबाव व रटाई क्यों ? क्या हमारा मानना यह है कि हम इतना
सब इसलिए सीख जाते हैं या याद रख पाते हैं क्योंकि हम रटाई करते हैं या घोटा
लगा-लगाकर याद करते हैं जबकि संज्ञानात्मक व न्यूरोलॉजिकल शोध बताते हैं कि
दिमाग विचारों का नेटवर्क है और हम उनके बीच संबंध बना-बनाकर ही सीखते हैं।
अंश से समग्र तक
यह किताबेंयह भी मानती हैं कि बच्चा भाषा छोटे-छोटे अंशों से सीखना शुरू करता
है ओर बाद में विस्तृत रूप में सीखता है। इसीलिए कक्षा I की किताब के पाठों में वर्णमाला लिखना सीखने पर जोर दिया गया है व लिखना सीखने पर 45
पृष्ठ लगाए गए हैं यानी हर वर्ण के लिए एक पृष्ठ। छोटे, बड़े वर्ण व पैटर्न
बनाने पर दिए काम को शामिल कर लें तो बच्चों को कक्षा एक की किताब में कुल 155
शब्दों को दोहरान करना है। तथा इन शब्दों के बीच किसी तरह का कोई आपसी संबंध
नहीं है सिवा इसके कि वे ए, बी, सी आदि वर्णों से शुरू होने वाले शब्द हैं। कक्षा
I की किताब में 15 कविताएँ हैं
किन्तु बच्चों में ध्वनि सजगता लाने के लिए कौन-कौनसी गतिविधियाँ करवाई जानी है इस
संबंध में शिक्षक के लिए किसी प्रकार के निर्देश नहीं दिए गए हैं। बच्चे को
वर्णमाला के इन 45 पृष्ठों को लिखने में मेहनत लगानी है और 155 शब्दों को रट्टा
मार-मारकर याद करना है। इन शब्दों के साथ 50 चित्र भी दिए गए हैं। इनपुट रिच
वातावरण की यह काफी अजीब सी व्याख्या है। इनपुट रिच वातावरण का अर्थ होता है कि
बच्चे शब्दों को सार्थक तरीकों से सीखें। यह सच में बोधगम्य इनपुट की बहुत ही
अजीब व विकृत व्यवाख्या है।
कक्षा II की शुरुआत पूरे टैक्स्ट के साथ होती है। यानी
हम सूक्ष्म (वर्णमाला) से विस्तृत की ओर बढ़ रहे हैं। किन्तु यह एनसीएफ 2005 के
उल्लंघन है जहाँ कहा गया है कि बच्चों को ऐसे इनपुट रिच वातावरण की जरूरत होती
है जिसमें संवाद का वातावरण हो और दिया जाने वाला इनपुट समझ में आने वाला हो। टैक्स्ट
इनपुट को छोटे अंशों में तोड़ देता है और फिर से उन्हें टैक्स्ट में एक साथ रख
देता है। इसलिए कक्षा I में और कुछ हद तक कक्षा II में बच्चें से वर्णमाला का घोटा लगवाया जाता है और फिर यह उम्मीद की जाती
है कि इसके बाद वह श्ब्दों को लिख सकता है। कक्षा II और III में छोटे शब्दों को लिखने
संबंधी कोई अभ्यास नहीं दिया गया है। बच्चे के पूर्वज्ञान पर कोई ध्यान नहीं
दिया गया है ना ही उसकी दुनिया को कक्षा में शामिल करने पर ध्यान दिया गया है।
कक्षाII से बच्चे को उपदेश देना
शुरू कर दिया गया है।
पियाजे को कब्र में दफना
दिया
कक्षा II में शुरूआत फिर से लिखने
से होती है और 6 पृष्ठ अक्षर पहचान तथा वर्ण व शब्द लिखने पर लगाए गए हैं। स्वामी
विवेकानन्द के पाठ से शुरुआत होती है जिसमें 7 वाक्यों में parliament, religions, represented, platform, culture व audience जैसे 6 मुश्किल व जटिल शब्द
शामिल हैं। एनसीएफ 2005 द्वारा प्रामाणिक टैक्स्ट लिए जाने संबंधी दिए गए सुझाव
की इस व्याख्या पर सिर्फ हैरानी ही जताई जा सकती है। इस टैक्स्ट के लेखकों को
पियाजे के सिद्धांतों को पढ़ना चाहिए और समझना चाहिए कि जब बच्चा कोंक्रीट
ऑप्रेशनल अवस्था में होता है तो वह क्या करने में समर्थ होता है और क्या नहीं।
वर्णमाला पद्धति
कक्षा III के बाद ध्वनियों पर करवाया
गया काम प्रचुर मात्रा में है जबकि शोध बताते हैं कि इस तरह का काम कक्षा I से III तक करवा लिया जाना चाहिए।
एनसीएफ 2005 कहता है कि शुरुआती सालों में बच्चों के आस-पास मौखित व लिखित भाषा
का वातावरण का होना जरूरी होता है (पृष्ठ 39, Input rich communicational
environments)। ऐसा होने से भाषा सीखना शुरू हो जाता है। लेकिन ऐसे वातावरण में जहाँ बच्चों
का 80 प्रतिशत समय अपना सिर झुकाए वर्ण व कुछ शब्द लिखने पर बर्बाद हो रहा हो
वहाँ भाषा सीखना कैसे शुरू हो सकता है ?
बच्चे की आवाज कहाँ है ? मूल्यों के लिए बहुलता की
बलि
गतिविधि I
के अंतर्गत दिए गए सभी सवाल तथ्यों की जाँच करते हैं और उनके जवाब में ‘सही’
जवाब की देने की उम्मीद की जाती है। 99 प्रतिशत सवाल एक ही जवाब वाले हैं एक से
ज्यादा जवाब वाले सवाल लगभग नहीं हैं। एनसीएफ 2005 के लिए अंग्रेजी पर तैयार किया
गया पोजिशन पेपर यह स्पष्ट सुझाव देता है कि बच्चों को उनके विचार व्यक्त
करने, उनकी रुचियों को जाहिर करने, उनकी पसंद-नापसंद को जाहिर करने व अपनी राय
देने के मौके प्रचुर मात्रा में दिए जाने चाहिए।
एनसीएफ 2005 कहता है कि पारंपरिक कक्षा में बच्चा
तभी बोलता है जब वह या तो शिक्षक के किसी सवाल का जवाब दे रहा होता है या शिक्षक
की कही बात को दोहरा रहा होता है। उनके पास खुद कुछ करने के अवसर व पहल करने के
मौके लगभग ना के बराबर होते हैं।
गतिविधि 1 में दिए गए सवालों के कुछ नमूने यहाँ
दिए जा रहे हैं :
1. Class III Page 13 What was
the old woman carrying, Who helped the old lady stand? Where did Meera throw
the banana peel? What did the old lady give to Meera?
2. Class IV page 13 What did
Ram make for his project? Who took Prakash to hospital and why? Who helped Ram
in joining the school? Why could not Prakash play the match? How did Prakash
realise Ram’s pain?
3. Class V page 13 Why does
the poet say we are not afraid? Which line in the song tells you that the poet
is not living peacefully in the present? How do you feel when you sing this
song?
4. Class VI page 13 At last…
This line is said by … Who gave advice to the son?
5. Class VII page 13 Which
trees were being cut down by the royal people and why? Who was the supervisor
of the team? Who lost their lives and why? How did Amritadevi protest? What did
Maharaja Abhay Singh do when he came to know about the massacre?
6. Class VIII page 10 Where
did the animals usually assemble? What did the animals do in their fun time?
When did the animals show their anger? Who was Nivedita? How did the animals
feel happy? Why did the cages look empty?
यहाँ दिए गए 25 सवालों में से केवल एक सवाल ऐसा
है जिसके एक से ज्यादा जवाब हो सकते हैं और जो बच्चों को उनकी राय व विचार रखने
का मौका देता है। बाकी सभी सवाल पाठ में मौजूद केवल एक जवाब देने की माँग करते
हैं। क्या समझ का आशय केवल पाठ में दी गई सूचना को ईमानदारी के साथ ज्यों का त्यों
देाहरा देना भर है ? क्या समझ के अंतर्गत विचार करना, थीम्स के बारे में सोचना उन्हें बच्चे
की दुनिया के साथ जोड़ना आदि शामिल नहीं है ?
रूढ़ छवियाँ या स्टीरियोटाइप्स
पाठ्यपुस्तक एक खास नज़रिए वाली रूढ़ छवियों या
स्टीरियोटाइप्स को ही और अधिक स्थापित करती हैं:
कक्षा 4 की पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ 64 पर दी गई
गतिविधि 4 में दिए गए इस अभ्यास पर एक नज़र डालते हैं
Stereotypes
I was doing my homework. My mother
______ (cook) food. My sister __________ (play). My father ________ watch TV.
My grandmother ____________ (sing) hymns. Our servant ________ arranging things
in the drawers.
किताबों की कहानियाँ यह बताती हैं कि गरीब
आदिवासी बच्चे त्याग कर रहे हैं तथा अमीर आदिवासी बच्चे असभ्य या दंभी होते
हैं।
-
भाषांतर : प्रमोद
पाठक
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