Wednesday, 25 May 2016

राजस्थान की नयी पाठ्य पुस्तकें - एक आशंका


हिंदी कक्षा 2 की पाठ्य पुस्तक को पलटते हुए प्राक्कथन में ही पाठ्य पुस्तक निर्माताओं की मंशा को लेकर अस्पष्टता प्रकट होती है, जो धीरे धीरे आशंका में बदलने लगती है. पहले ही अनुच्छेद में बात कुछ इस तरह शुरू की गयी है कि "वर्तमान में राष्ट्रिय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2005 तथा निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के द्वारा यह स्पष्ट है की सभी शिक्षण क्रियाओं में विद्यार्थी केंद्र के रूप में हों." यह बात एक बार यह उम्मीद जगाती है कि किताब संभवतः राष्ट्रिय पाठ्यचर्या के अनुरूप न भी बनी हो तो निर्माताओं की इस दस्तावेज से सैद्धांतिक असहमति शायद नहीं. लेकिन इसी अनुच्छेद के आखिरी लाइन में आते आते यह उम्मीद आशंका का रूप लेने लगाती है. पहले ही अनुच्छेद के अंत में यह कहा गया है कि "पाठ्यचर्या को सही रूप में पहुंचाने के लिए पाठ्य पुस्तक एक महत्वपूर्ण साधन है. अतः बदलती पाठ्यचर्या के अनुरूप ही पाठ्य पुस्तकों में परिवर्तन कर राज्य सरकार द्वारा नवीन पाठ्य पुस्तक तैयार करवाई गयी है." यह दो पंक्तियाँ पाठ्य पुस्तक निर्माताओं में पाठ्य पुस्तक और पाठ्य चर्या के बीच के संबंधो की समझ के प्रति आशंकित करती हैं. शिक्षा के क्षेत्र में समझ यह रही है की पाठ्य चर्या रूपरेखा ऐसा दस्तावेज है जो शिक्षा के लक्ष्य, पाठ्य क्रम और पाठ्य पुस्तक के स्वरुप को निर्देशित करता है. यानि पाठ्य पुस्तक कैसी होनी चाहिए उसके बारे में संकेत इस दस्तावेज में मौजूद रहते हैं. राजस्थान राज्य द्वारा तैयार की गयी नयी पाठ्य पुस्तकें चतुराई के साथ राष्ट्रिय पाठ्य चर्या 2005 का ज़िक्र कर एक बारगी यह भ्रम पैदा करती हैं कि यह किताबें उन सैद्धांतिक आधारों से सहमत हैं जो इस दस्तावेज में उल्लिखित हैं, लेकिन प्राक्कथन के पहले अनुच्छें के अंतिम वाक्य में यह समझ आने लगता है कि यह पाठ्य पुस्तक एक ऐसी नई पाठ्यचर्या की भावभूमि तैयार कर रही हैं जो शिक्षा को एक बार फिर उसके संवैधानिक और सैद्धांतिक आधारों के खींच कर प्रतिगामी रास्ते पर ले जा सकती हैं. पाठ्य पुस्तक में संकलित पाठ्य सामग्री और अभ्यास की गतिविधियाँ इस आशंका को और पुख्ता करती हैं. 

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