Sunday, 12 June 2016

राजस्थान के निवासियों के लिए,पानी की कमी से जूझना, बहुत अधिक चुनौतिभरा काम रहा है | चाहे गाँव हो या शहर, यहाँ के निवासियों ने इस चुनौती के कई रचनातमक हल खोजे हैं व रचे भी हैं | पर यहाँ की सवर्ण जातियों के अधिकतर लोगों ने बड़ी बेशर्मी के साथ, पानी पर अपना कब्जा ही नहीं जमाया बल्कि गरीब,मेहनतकश लोगों को अपने कब्जे के पानी को छूने भी नहीं दिया है | ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जब हैंडपम्प से पानी पी लेने पर बच्चों तक को पीट-पीट कर घायल कर दिया गया है | नई पाठ्य-पुस्तकें इस मुद्दे को नजरअंदाज कर देती है और पाठों से बाहर कर देती है |

'पर्यावरण अध्ययन' के लिए, एक और महत्वपूर्ण घटक है-'अनमोल जल'|कक्षा तीन की पाठ्य-पुस्तकों में, एन.सी..आर.टी.की पुस्तक में इस घटक से जुड़े तीन पाठ हैं | एस.आई..आर.टी.की पिछले वर्ष चल रही किताब में दो पाठ और इस वर्ष के लिए बनाई गई, नई पुस्तक में भी दो पाठ है |
  1. एन.सी.ई.आर.टी.कक्षा तीन की पुस्तक के तीनों पाठों में, विभिन्न प्रकार की गतिविधियों, रिफ्लेक्ट करने के लिए दिए गए प्रश्नों, चित्रों,आदि के माध्यम से बच्चों को पानी के सही इस्तेमाल के प्रति  सचेत किया गाया है | ‘क्या ऐसे भी कुछ लोग हैं, जिन्हें वहां से पानी नहीं भरने दिया जाता ?’ इस प्रकार के प्रश्नों के माध्यम से अध्यापकों को यह कहा गया है कि वें इस प्रश्न के माध्यम से बच्चों के बीच चर्चा आयोजित करें ताकि भेदभाव जैसे विषयों के प्रति बच्चों की संवेदनशीलता बढे |
  2. पिछले वर्ष चल रही एस.आई.ई.आर.टी की पुस्तक में भी एन.सी.ई.आर.टी.के तरीकों के जैसे ही प्रयास किए गए हैं | इन दो पाठों में भी बच्चों को पानी व पानी से जुड़े भेदभाव वाले मुद्दे पर भी बच्चों में  संवेदनशीलता बढाने के प्रयास किए गए हैं |
  3. एस.आई.ई.आर.टी.की नई पुस्तक में जानकारियों व उपदेशों के माध्यम से बच्चों को पानी के सही उपयोग के प्रति तो संवेदनशील बनाने की कोशिश की गई है पर भेदभाव वाले मुद्दे पर यह पुस्तक चुप रहती है |
यह समझ नहीं आता कि नई पुस्तक के लेखकों ने क्यों इस मुद्दे को बाहर निकाल दिया है ? क्या वे नहीं चाहते कि इस मुद्दे पर बच्चे संवेदनशील हों ? या वे इस तरह के भेदभावों को बनाएं रखना चाहते हैं ?  
- कमल 

No comments:

Post a Comment