Monday, 13 June 2016

नई पाठ्य-पुस्तकों के लेखक अल्प-ज्ञानी हैं या बहुत लापरवाही से पाठों को लिखा गाय है ? 'पर्यावरण अध्ययन' कक्षा तीन के तीसरे घटक 'हम और हमारा खान-पान' से सम्बंधित पाठो को पढ़ने के दौरान,यह प्रश्न बार-बार मुझें परेशान करता रहा था !

1.एन.सी..आर.टी.की पुस्तक में इस घटक से सम्बंधित दो पाठ हैं | इन पाठों में कुल 8 चित्र हैं जो बच्चों को पर्यावरण के प्रति और ज्यादा संवेदनशील बनाते हैं | 15 गतिविधियाँ है जो कि अध्ययन की प्रक्रिया पर बच्चों की पकड़ को मजबूत बनाते हुए, बच्चे अपने आस-पास व पूरी दुनिया में खाए जाने वाले खाद्य-पदार्थों से परिचित कराती हैं,बिना मतारोपण के | इन दो पाठों में कुल 18 प्रश्न है जिन पर बच्चों को बार-बार सोचने व चर्चा के अवसर उपलब्ध कराए गए हैं |
2.सत्र 2015-16 में चल रही, एस.आई..आर.टी.की पुस्तक में इस घटक से जुड़े तीन पाठ है | इन पाठों में 24 चित्र हैं, गतिविधियाँ हैं और 20 प्रश्न हैं | बच्चों की सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से पाठ को बहुत प्रभावी तरीकों से बुना गया है |
3.सत्र 2016-17 के लिए बनाई गई नई पाठ्य-पुस्तक में भी इस घटक से सम्बंधित दो पाठ है | इन पाठों में केवल 5 चित्र हैं,7 गतिविधियाँ हैं और 20 प्रश्न हैं | अधिकतर प्रश्नों को इस प्रकार से बनाया गया है कि इन प्रश्नों में बच्चे से सिर्फ पाठ में दी गई जानकारियों को याद रख लेने व बहुत ही सामान्य जानकारियों को बता देने की अपेक्षा की गई है |
नई पुस्तकों के इन पाठों को पढ़ते-पढ़ते मुझें एक घटना भी बार-बार याद आती रही थी | कुछ वर्षों पहले मैं 'केकड़ी'नगर में रहता था | कड़क सर्दी की एक शाम,एक मित्र के साथ 'मटन' खाने की इच्छा हुई | ऐसा भोजनालय खोजा गया | एक गली, फिर उसमें भी एक गली, गली के एकदम से लास्ट कोने में यह दुकान थी | हमने दुकान वाले से पूछा कि यार सभी तो दुकाने ऐसी जगह खोलते हैं जहां लोग आसानी से पहुँच सकें | आपने एकदम ऐसी छुपी हुई जगह पर खाने की दुकान क्यों खोली है ? उन्होंने बताया कि मेरी दुकान इस कारण से ही चलती है कि यह ऐसी जगह है | क्योंकि मेरे यहाँ जो ग्राहक आते हैं वे छुपकर ही खाने वाले लोग हैं |

नई पुस्तकों के लेखक हमारी नई पीढ़ी को ऐसा ही बनाना चाहते हैं ताकि इच्छा होने पर वें मांसाहारी खाना छिपकर हो खा सकें | क्योंकि नई पुस्तक के दोनों पाठो में बच्चों को यह जानकारी दी गई है कि राजस्थान के लोग विविधता के नाम पर या तो बाजरा खाते हैं या गेंहूँ खाते हैं या मक्का खाते हैं या चावल खाते हैं | मछली व समुंद्री जीव तो समुन्द्र के पास रहने वाले खाते हैं | ये ही नहीं जो समाज में परम्परा से चला आ रहा है, इन पाठों के माध्यम से लेखक उन्हीं परम्पाराओं को बच्चों पर थोपना चाहते हैं |  

- कमल 

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