Wednesday, 8 June 2016

क्यों मेहनत की जाए, दलितों के,अल्पसंख्यकों के और गरीबों के बच्चे हैं, कुछ भी पढ़ा दो.......

इस वर्ष यूनिसेफ राजस्थान के वित्तीय सहयोग से, एस.आई..आर.टी.उदयपुर द्वारा नई पाठ्य-पुस्तकों का निर्माण किया गया है | पिछले वर्ष ही नई पा.पुस्तकें बनकर तैयार हुई थीं और इस वर्ष फिर से नई पुस्तकों का निर्माण कर दिया गया है | सुना है कि यह पुस्तकें लगभग 45 दिनों में ही तैयार कर दी गई हैं | बड़ा आश्चर्य हुआ यह सुनकर, क्योंकि सामान्यत: बड़ी मेहनत के बाद भी लगभग छ: माह का समय, पुस्तकें तैयार होने में लगता है |
'पर्यावरण अध्ययन’ शिक्षण में, मेरी रूचि रही है | पिछले कुछ वर्षों से, मैं लगातार छोटे बच्चों के साथ अध्यापन से जुडा रहा हूँ | मेरी भी जिज्ञासा थी कि मैं इन पुस्तकों का अध्ययन करू | बड़ी मुश्किल से पुस्तकें उपलब्ध हो पाई हैं |
नई पाठ्य-पुस्तकों का निर्माण इतनी जल्दबाजी में क्यों किया गया ? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए , 'पर्यावरण अध्ययन' कक्षा तीन की नई पुस्तक के प्राक्कथन को पढ़ा | पहले ही पैराग्राफ में लिखा है - 'बदलती हुई परिस्थितियों के अनुरूप शिक्षा में परिवर्तन होना जरुरी है, तभी विकास की गति तेज होती है' इसी पैराग्राफ के अंत में लिखा है - 'पाठ्यचर्या को सही रूप में पहुंचाने के लिए पाठ्यपुस्तक महत्वपूर्ण साधन है | अत: बदलती पाठ्यचर्या के अनुरूप ही पाठ्यपुस्तकों में परिवर्तन कर राज्य सरकार द्वारा नवीन पाठ्यपुस्तक तैयार कराई गई है ' |
क्योंकि प्राक्कथन में ही यह भी लिखा गया है कि वर्तमान में एन.सी.एफ.2005 व आर.टी..2009 के द्वारा यह स्पष्ट है कि समस्त शिक्षण क्रियाओं में विद्यार्थी केंद्र में है, तो लगा कि बच्चे को केंद्र में रख कर बनाई गई अन्य पुस्तकों का अध्ययन भी करना चाहिए | मैने एन.सी..आर.टी.द्वारा बनाई गई व पिछले वर्ष में चल रही एस.आई..आर.टी.द्वारा बनाई गई पाठ्य  पुस्तकों के साथ नई पाठ्य-पुस्तकों का अध्ययन करना शुरू किया है |
तीनों पुस्तकों के पहले पाठों का तुलनात्मक अध्ययन किया तो लगा कि नई पुस्तकों को इतनी जल्दबाजी में बानाने का नतीजा यह हुआ है कि अध्ययन की गति तेज होने के बदले अवरुद्ध कर दी गई है | पर्यावरण अध्ययन में 'अध्ययन' की प्रक्रिया में बच्चों को शामिल किया जाता है | यह कोशिश भी प्रभावी तरीकों से की जाती है कि बच्चों में अध्ययन कौशलों का विकास हो | नई पुस्तक के पहले पाठ में बार-बार पुस्तक लेखकों द्वारा मतारोपण किया गया है उपदेश देने की जल्दबाजी में पाठ बच्चों के लिए बोझिल हो गए हैं | जैसे कि:-
1. एन.सी..आर.टी.द्वारा बनाई गई 'आस-पास' कक्षा तीन की पुस्तक के पहले पाठ 'डाल-डाल पर,ताल-ताल पर' पाठ में, एक लड़की को केंद्र में रख कर इस प्रकार से बुना गाया है कि बच्चों को बार-बार पाठ में अवलोकन करने का मौका मिलता है, व सोचने के अवसर मिलते हैं | विश्लेषण कौशलों को बढाने के लिए सरलता से कठिन की ओर बढ़ा गया है | जैसे कि पहले सूचियाँ बनाना फिर समूहीकरण करना,आदि | पहले ही पाठ में कुछ रचनात्मक कला कार्य करने का मौका भी बच्चों को दो बार मिलता है | ऐसी कोशिशे भी की गई है कि बच्चों का भाषा और अधिक समृद्ध हो पाए |
2.एस.आई..आर.टी.द्वारा पिछले वर्ष में चल रही, पाठ्य-पुस्तक 'मेरी दुनिया' के पहले पाठ 'बरसो रे बदरा' में सीधे निर्देश देते हुए बच्चों को अध्ययन की प्रक्रिया में डालने का थोड़ा प्रयास नजर आता है | दो बार बच्चों से अवलोकन करने की अपेक्षा भी की गई है | बच्चों को थोड़ा सोचने व निर्णय लेनी का मौका भी मिलता है | भाषा विकास के प्रयास व थोड़ा क्राफ्ट का काम बच्चों से कराने के प्रयास भी इस पाठ में देखे जा सकते हैं |
3.एस.आई..आर.टी. द्वारा आने वाले सत्र के लिए तैयार की गई नई पाठ्य पुस्तक 'अपना परिवेश' के पहले पाठ 'रिश्ते-नाते' में बच्चों को अध्ययन की प्रक्रिया में डालने के बदले सीधे-सीधे जानकारियाँ देने की कोशिश ही नहीं नहीं की गई है, अभिवादन की एक ही प्रकार की शैली का मतारोपण भी किया गया है | पाठ में इस जानकारी को स्थापित करने की कोशिश है कि गाँवों में बड़े परिवार होते हैं व शहरों में छोटे परिवार होते हैं | बार-बार यह जिक्र है कि बड़ों को प्रणाम करना चाहिए,आदि-आदि | विश्लेषण कौशल को बढाने के प्रयास में जल्दबाजी के चक्कर में तीन बार बच्चों से कुछ सामान्य जानकारियों को सारणी में भरवाने की अपेक्षा की गई है | अन्य दोनों पुस्तकों के पहले पाठों में, बच्चों को करने के लिए कुछ रोचक गतिविधियाँ सुझाई गई है पर इस पाठ में एक भी गतिविधि नहीं है |
नई पाठ्य पुस्तक के पहले पाठ का अध्ययन करने के बाद लगा कि इन पुस्तकों को बहुत जल्दबाजी में ही नहीं, बच्चों के प्रति असंवेदनशील नजरिए से भी इन पुस्तकों को तैयार किया गया है | शायद यह सोचकर कि गरीबों के बच्चे हैं क्या फर्क पड़ता है | हमारे राजस्थान में अगले वर्ष से केन्द्रीय विद्यालयों के बच्चे तो अच्छी व प्रभावी पुस्तकों से अध्ययन करेंगे व सामन्य प्राथमिक स्कूलों के बच्चे जानकारियों के अम्बार के नीचे दबे-दबे से, किसी तरह से कक्षा दर कक्षा आगे बढ़ते रहेंगे,शिक्षित होने के भ्रम के साथ |  

                                                                    कमल 

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