Friday, 10 June 2016

पर्यावरण अध्ययन, कक्षा- 5

पाठ- 14 खाने से पचने तक 
पाठ के शुरू में भोजन को ठीक से चबाने पर ज़्यादा ज़ोर है जबकि शीर्षक पर आधारित अवधारणा (मुंह से मल त्याग तक) को संक्षेप में 4 लाइन में पेज 70 पर दे दिया गया है। भोजन के घटकों पर कोई चर्चा किए बिना ग्लूकोस को तुरंत ऊर्जा के लिए ज़रूरी बता दिया गया है, इसी क्रम में आगे स्कूल में दी जाने वाली आइरन की गोली खाने की आवश्यकता बताई गयी है और पाठ के अंत में कृमि नियंत्रण के लिए दी जाने वाली गोली खाने का संदेश है।

खास बात यह है कि इस पाठ में पेज 73 पर एक खाद्य पिरामिड दिया गया है जो किस आधार पर बनाया गया है, यह विवाद का विषय है। भोजन में क्या, कितना खाएं बताते हुए प्रोटीन के स्रोत- दूध, दही, छाछ (जो आसानी से उपलब्ध होता है और स्वयं मुख्यमंत्री सरस के विज्ञापन में रोजाना 2 ग्लास दूध पीने को कहती हैं), मछली और मांस का सीमित इस्तेमाल सुझाया गया है। सर्वाधिक इस्तेमाल में अनाज और दालें दिया गया है। उच्च क्वालिटी प्रोटीन के सस्ते, सुलभ और अच्छे स्रोत अंडे का इस पिरामिड में कोई ज़िक्र तक नहीं है। सर्वाधिकखूब, सीमित और कम मात्र बोलने के आधार क्या हैं और अनुपात क्या हैं, जब तक ये स्पष्ट न हों, इस पिरामिड को लेकर बच्चे के मन में misconception बनने की पूरी संभावना है।




एक ग्यारह साल के बच्चे को भोजन में सभी अवयवों (कार्बोहायड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिज, जल और रेशेदार चीज़ें) की एक संतुलित मात्रा की ज़रूरत होती है, और बिना मात्रा बताए उसे इस तरह के पिरामिड के माध्यम से सीमित या कम खाएं जैसी बात कहना आपत्तिजनक है। 

इंटरनेट पर ऐसे कई चित्र हैं खास कर अमरीकी एजेन्सि यूएसडीए द्वारा प्रस्तावित पिरामिड लेकिन उनमें भी हर किस्म के भोजन की सर्विंग्स की संख्या दर्शाई गयी होती हैंऔर वो भी वयस्कों की आवश्यकता के आधार पर, बच्चों के लिए कहीं ऐसा चार्ट नहीं दिखता। 


इस तरह यह पाठ बहुत उपदेशात्मक हैखोजने/ तर्क ढूँढने/ ज्ञान निर्माण के मौके देने के बजाय बच्चों को सूचनाओं को रटने/ जैसा है वैसा ही मान लेने पर अधिक ज़ोर देता है और अफसोस ये कि सूचनाएँ भी तोड़ मरोड़ के पेश की गयी हैं। 

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