अगर आप हर साल के सर्वे में यह सुनते हैं कि बच्चे गणित में कमजोर हैं, उनहें गणित
की बुनियादी संक्रियाएं ठीक से करना नहीं आता तो इसमें हैरान होने की कोई बात होनी
नहीं चाहिए। क्योंकि उनके लिए किताबें बनाने वालों को भी गणित ठीक से नहीं आती। अब
जिसे खुद गणित ठीक से नहीं आती वह दूसरों को गणित सिखाने की किताब कैसी लिखेगा, घटाना सिखाने का एक और तरीका इस बात का ज्वलंत उदाहरण है। इस पन्ने पर दिए गए घटाने के तरीके की कुछ समस्याएं इस तरह से हैं –
1. चित्र में इकाई व दहाई में कोई फर्क नहीं दिखता। एक इकाई के लिए भी भी
एक डंडी और एक दहाई के लिए भी एक डंडी। चित्र देख कर बच्चे इसी नतीजे पर पहुंचेंगे कि इकाई
व दहाई में बराबर मात्रा होती है। यानी एक इकाई बराबर एक दहाई।
2. यह चित्र इकाई व दहाई के फर्क व दोनों के संबंधों को बच्चों
के सामने दर्शाने से परहेज करता है। वह संबंध यह है, कि दहाई, इकाई का दस गुना होता है और
एक दहाई में दस इकाइयां होती है। दहाई की इकाई, दस इकाइयों को मिलाने से बनती है। इस संबंध को दर्शाने
के लिए इकाई के लिए एक डंडी तथा दहाई को दर्शाने के लिए दस डंडी का गट्ठर बनाना जरूरी
होता है। लेखक इस संबंध को बच्चों की नजर से क्यों छुपाना चााहते हैं, यह बात समझ से परे है।
3. औपचारिक घटाने को समझने के लिहाज से किया गया दृश्यीकरण नाकाफी व आधा अधूरा है। इसमें मोटे तौर पर तीन समस्याएं हैं।
a. पहली, चित्र में संख्याओं को ठीक से दर्शाया नहीं गया। जैसे 27 के
सामने 2 व 7 डंडियां बनी है। यानी आप डंडियों को देख कर 27 का मतलब अपने मन में नहीं
गढ़ सकते। इसके लिए जिस स्तर का अमूर्तीकरण आपको करना पड़ेगा व जिस तरह की भाषा इस्तेमाल
करनी पड़ेगी वह कक्षा दो के बच्चे के लिए मुमकिन नहीं है। उसके लिए आसान
है 2 व 7 को गिन कर 9 बता देना। यानी यह चित्र 27 को 9 में बदल देता हैै।
b. दूसरी, दोनों संख्याओं
के लिए अलग अलग चित्र नजर नहीं आते। यानी संख्या 15 को चित्रों में अलग से दर्शाया
ही नहीं गया है। आप इस संख्या को चित्र में खोजने जाएंगे तो आपको विकट प्रक्रिया से
गुजरना पड़ेगा। आप अगर डंडियों के चित्रों में 15 को तलाशेंगे तो आपको 1 व 5 डंडी मिला
कर छह डंडियां मिल जाएगा। उस 1 व 5 को 15 में बदलने के लिए फिर से जिस स्तर का अमूर्तीकरण
व भाषा व समझ चाहिए वह कक्षा 2 के बच्चों के पास होनी मुमकिन नहीं है।
c. तीसरी, इस दृश्यीकरण की सबसे बड़ी समस्या यह है कि आप अनौपचारिक
घटाना चीजों को निकाल कर या काट कर समझ सकते हैं लेकिन औपचारिक घटाने को समझने के लिए
आपको दो संख्याओं की तुलना करके यह दिखलाना पड़ता है कि एक संख्या, दूसरी संख्या कितनी ज्यादा
या कितनी कम है। लेखक गण, तुलना करके घटाना की अवधारणा से अनभिज्ञ जान पड़ते हैं।
4.
गणितीय प्रक्रियाओं
को भाषा में ठीक से व्यक्त करना गणितीय संप्रेषण को बेहतर करने में मदद करता है।
सवाल को समझाने के लिए लिखी गई भाषा मोटे तौर पर निरर्थक ढंग से गणनविधि का वर्णन
करती है और निकाल कर घटाने का तर्क काम मे लेती है। वर्णन करते वक्त वह इकाई दहाई
का फर्क भी झाड़ू मार कर साफ कर देती है और सिर्फ अंकों को ही घटाती है। यानी आप पढ़
कर यह समझ सकते हैं कि घटाते वक्त आपको सिर्फ अंकों को काटना पीटना है। इससे संख्या
की मात्रा की कोई कल्पना इस वर्णन को पढ़ या सुन कर बच्चे के दिमाग में नहीं बनेगी।
यह बात आगे हासिल के घटाव सिखाने में भी मुश्किल पैदा करेगी। आप एक ही आकार की दहाई व
इकाई की डंडी से दस इकाइयां बाहर निकाल कर कैसे दिखाएंगे।
5. आखिरी बात यह है कि प्रस्तुतीकरण में अंकों में लिखा सवाल भाषा
में लिखी घटाने की प्रक्रिया से कटा हुआ है। भाषा में घटाने का वर्णन करते वक्त न
तो लेखक यह बताते हैं कि सवाल क्या है, किस संख्या में से किसको घटाना है और अंत में कौनसी
संख्या मिलती है। शब्दों में लिखे गए विवरण को पढ़ कर कहीं से भी यह पता नहीं चलता
कि 27 में से 15 घटाने पर शेषफल 12 बचते हैं।
मुझे नहीं पता कि आपका ध्यान इस बात पर गया या नहीं
कि लेखकों ने बीड़ा तो दो अंकीय घटाना सिखाने का उठाया था लेकिन सिखाते वक्त उन्होंने
सिर्फ और सिर्फ एक अंकीय घटाना ही सिखाया है। इसलिए वे सिर्फ शुरूआत व आखिर में हल
किया गया दो अंकीय सवाल लिख भर देते हैं लेकिन सिखाने की जमीन तोड़ कोशिश में कभी भी, कहीं भी, किसी भी तरह भूल कर भी दो अंकीय
घटाने का कोई जिक्र करने से कोसों दूर ही रहते हैं।
रवि कांत
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ReplyDeleteबढ़िया व सटीक लिखा है।
ReplyDeleteकोशिश की है कि अवधारणात्मक समस्या ठीक से उभर कर सामने आ सकेे।
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